लेखक:
जयंत विष्णु नारलीकर
जन्म : 19 जुलाई, 1938 ; कोल्हापुर (महाराष्ट्र)। शिक्षा : बी.एस.सी. (1957), बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (पिता विष्णु वासुदेव नार्लीकर यहाँ गणित के विभागाध्यक्ष थे); बी.ए. (1960), पीएच.डी. (1963), एम.ए. (1964), कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, लंदन। कैम्ब्रिज में वे ‘रैंग्लर’ रहे। पी-एच.डी. करते समय उन्हें सुविख्यात वैज्ञानिक फ्रेड हॉयल का मार्गदर्शन मिला, जिन्होंने अपने ‘इंस्टिट्यूट ऑफ थिऑरेटिक एस्ट्रॉनॉमी’ (सैद्धांतिक खगोलशास्त्र संस्थान) में नार्लीकर को संस्थापक-सदस्यता का सम्मान दिया। मुम्बई लौटकर ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ में प्राध्यापक हुए। सन् 1988 में स्थापित ‘इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रॉनॉमी एंड एस्ट्रोफिजि़क्स’ (अन्तर्विश्वविद्यालयीन खगोलशास्त्र तथा खगोल-भौतिक केन्द्र), पुणे के संस्थापक-संचालक बने। 1994-97 में इंटरनेशनल एस्ट्रॉनॉमिकल यूनियन के कॉस्मोलॉजी कमीशन के अध्यक्ष रहे। प्रकाशन : सैद्धांतिकी, भौतिकशास्त्र, खगोल-भौतिकी तथा विश्व-रचनाशास्त्र पर कई ग्रन्थ और शोध-निबन्ध। अपने वरिष्ठ मार्गदर्शक के साथ आविष्कृत किया गया उनका ‘हॉयल नार्लीकर सिद्धान्त’ खगोल-भौतिकी के हर ग्रन्थ में उद्धृत। विज्ञान-केन्द्रित कई पुस्तकें। सम्मान : टाइसन पदक, एस-सी.डी. उपाधि (कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय), शान्तिस्वरूप भटनागर पुरस्कार, एम.पी. बिड़ला पुरस्कार, भारतीय साहित्य विज्ञान अकादमी का इन्दिरा पुरस्कार, फ्रेंच एटॉनॉमिकल सोसायटी का प्रिक्स जॉनसन, यूनेस्को का कलिंग पुरस्कार, वाइरस उपन्यास पर महाराष्ट्र सरकार का पुरस्कार तथा 1965 में पद्मभूषण उपाधि। 2014 में उनकी आत्मकथा को मराठी भाषा में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। |
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